50 के दशक के उत्तरार्ध में, भारत सरकार ने भ्रष्टाचार के खतरे के संबंध में संसद सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई न्यायसंगत चिंताओं पर कार्रवाई करते हुए, केंद्र सरकार के संगठनों में भ्रष्टाचार की जाँच करने के लिए मौजूदा उपायों की समीक्षा करने और भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को अधिक प्रभावी बनाने हेतु उठाए जाने वाले व्यावहारिक उपायों की सलाह देने के लिए एक समिति का गठन किया था । इस समिति को 'संथानम समिति' के रूप में जाना जाने लगा, क्योंकि संसद सदस्य श्री के संथानम की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया था।
अपनी इच्छा से महत्वपूर्ण परिणाम पाने वाले कतिपय अतिरिक्त सांविधानिक दायित्वों को अपने ऊपर कार्यान्वित करने हेतु सरकार के लिए आयोग एक अनूठा उदाहरण है। - जी एल नंदा, भारत के भूतपूर्व गृह मंत्री
समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार का एक संकल्प 11.02.1964 को पारित किया गया था और केन्द्रीय सतर्कता आयोग अस्तित्व में आया। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की कमी वाले मामलों पर निर्णय लेने में सामान्य मानकों का विकास करने और लागू करने के लिए आयोग की स्थापना को आवश्यक माना गया था। श्री नित्तूर श्रीनिवास राव, जो एक स्वतंत्रता सेनानी और मैसूर राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, दिनांक 19 फरवरी 1964 को प्रथम केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बने।
वर्ष 1997 में, हवाला मामले में श्री विनीत नारायण और अन्य द्वारा जनहित में दायर रिट याचिका में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने 1998 में एक अध्यादेश जारी किया। इस अध्यादेश ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन की कार्य पद्धति पर अधीक्षण रखने की शक्तियों के साथ केन्द्रीय सतर्कता आयोग को सांविधिक दर्जा प्रदान किया । संसद के दोनों सदनों द्वारा विधेयक पारित किए जाने के बाद और राष्ट्रपति की सहमति से, केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 दिनांक 11.09.2003 से लागू हुआ।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम के प्रभाव में आने के साथ, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो सतर्कता आयुक्तों के साथ तीन सदस्यीय बन गया । केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की सिफारिशों पर की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और लोक सभा में विपक्ष के नेता (लोकसभा) शामिल होते हैं।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र समझौता के अनुच्छेद 6 और अनुच्छेद 36 के अनुरूप आयोग को पर्याप्त स्वतंत्रता और कार्यात्मक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत अनुसमर्थन करने वाले देशों को अपने देश में एक स्वतंत्र निवारक भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है।